मां का दूध बच्चे के लिए वरदान है
लेकिन अगर बच्चे को ये वरदान जन्म के पहले घंटे में नहीं मिला तो उसकी
ज़िंदगी ख़तरे में भी पड़ सकती है.
यूनिसेफ़सवाल उठता है कि अगर कोई औरत अपने बच्चे को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान नहीं करा पाए तो इसका असर क्या होगा?
रिपोर्ट की मानें तो अगर बच्चे को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान नहीं मिलता है तो बच्चे की मौत आशंका 33 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है.
दावा किया गया है कि जिन बच्चों को मां का दूध पहले घंटे में मिलता है वो तुलनात्मक रूप से ज़्यादा स्वस्थ रहते हैं और उन्हें कई तरह के संक्रमण से भी सुरक्षा मिलती है. मां और बच्चे का यह संपर्क ब्रेस्टमिल्क प्रोडक्शन के लिहाज़ से भी ज़रूरी है. इस पहले संपर्क से ही कोलोस्ट्रम बनने में भी मदद मिलती है.
साइंसडेली
रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि सी-सेक्शन यानी ऑपरेशन से होने वाली डिलीवरी में तेज़ी आने की वजह से भी कई बार मां, बच्चे को एक घंटे के भीतर दूध नहीं पिला पाती.
साल 2017 के आकड़ों के आधार पर पाया गया है कि दुनिया भर में सी-सेक्शन के मामलों में 20 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है. मिस्र का उदाहरण देते हुए इसके प्रभाव को समझाने की कोशिश की गई है. यहां सी-सेक्शन से पैदा सिर्फ़ 19 फ़ीसदी बच्चों को ही पहले घंटे में मां का दूध मिला जबकि नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए 39 फ़ीसदी बच्चों को एक घंटे के भीतर मां का दूध मिल गया.
सी-सेक्शन के अलावा एक और भी बहुत बड़ी वजह है जिसके चलते बच्चे को पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिल पाता.
यूनिसेफ़ की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए हमनें बीबीसी के फ़ेसबुक ग्रुप लेडीज़ कोच पर महिलाओं से उनके अनुभव साझा करने को कहा.
ज़्यादातर महिलाओं का मानना है कि मां, बच्चे को पहले घंटे में दूध पिला पाएगी या नहीं ये बहुत हद तक अस्पताल, डॉक्टर, नर्स और उस वक़्त मौजूद लोगों पर निर्भर करता है.
अनुमेधा प्रसाद का कहना है कि कुछ बातों को भारत के ज़्यादातर अस्पतालों में तवज्जो नहीं दी जाती है जबकि विकसित देशों में बच्चे के पैदा होते ही उसे उसी तरह मां को दे दिया जाता है. इसके बाद कहीं जाकर नाल काटी जाती है और साफ़-सफाई की जाती है. वहां और यहां में ये बड़ा अंतर है.
बतौर अनुमेधा "ज़्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि बच्चों को जन्म के तुरंत बाद स्तन से लगाते ही दूध आता नहीं है. लेकिन बच्चे को छाती से सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नहीं लगाया जाता, ये भावनात्मक लगाव के लिए भी ज़रूरी है."
अनुमेधा के दोनों बच्चों की डिलीवरी नॉर्मल हुई थी. वो बताती हैं कि उनके पिता डॉक्टर हैं इसलिए उन्हें पहले से ही पता था कि मां का पहला दूध एक घंटे के भीतर देना ज़रूरी होता है.
वहीं दिप्ति दुबे भी उन मांओं में से हैं जिन्हें ये पता था कि बच्चे के जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को दूध पिलाना ज़रूरी है. उन्होंने भी अपने बच्चे को जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराया था.
अनुमेधा से अलग ख़दीजा के दोनों बच्चे सी-सेक्शन से हुए. ख़दीजा के अनुसार, "सी-सेक्शन में चुनौती तो होती है लेकिन जब ये पता हो कि बच्चे को कैसे ब्रेस्टफ़ीड कराना है तो ज़्यादा परेशानी नहीं होती."
ख़दीजा के एक बच्चे का जन्म लंदन में हुआ. जहां उन्हें डॉक्टरों ने ये बता दिया था कि क्योंकि उन्हें स्टिचेज़ हैं तो बैठने की ज़रूरत नहीं वो लेटे-लेटे भी बच्चे को दूध पिला सकती हैं.
वो कहती हैं "मैंने अपने बच्चे को आधे घंटे के भीतर फ़ीड कराना शुरू कर दिया था. लेकिन वहीं जब मेरी पहली डिलीवरी दिल्ली में हुई थी तो मुझे डॉक्टरों की पूरी मदद नहीं मिली थी. मेरी बच्ची भी मुझे दो दिन बाद मिली थी. मेरे टांके में दर्द हो रहा था. ऐसे में मैं अपनी बेटी को पहला दूध नहीं पिला सकी थी."
के अनुसार, कोलोस्ट्रम को पहला दूध भी कहते हैं. मां बनने के बाद कुछ दिनों तक कोलोस्ट्रम ही प्रोड्यूस होता है. कोलोस्ट्रम गाढ़ा, चिपचिपा और पीलापन लिए हुए होता है. कोलोस्ट्रम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, एंटी-बॉडीज़ का ख़जाना होता है. इसमें फ़ैट बहुत कम होता है, इस लिहाज़ से बच्चा इसे आसानी से पचा भी लेता है. बच्चे के पहले स्टूल (मेकोनियम) के लिए भी ये ज़रूरी है.
रिपोर्ट के अनुसार, मां के पहले दूध को बच्चे के पहले वैक्सीन के तौर पर भी माना जाता है.
के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले ज़्यादातर देशों में पांच में से सिर्फ़ दो बच्चों को ही जन्म के पहले घंटे में मां का दूध मिल पाता है. इसके चलते बच्चों की सेहत पर तो असर पड़ता है ही साथ ही उनके जीवित नहीं रहने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.
ये रिपोर्ट दुनियाभर के 76 देशों में हुए अध्ययन पर आधारित है. रिपोर्ट के अनुसार, क़रीब 7 करोड़ 80 लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिला.
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